सोलह सिंगार
इतरा रहा है ये मन मेरा करके सोलह सिंगार
माथे पे चमक रहा है मेरे कुमकुम सुर्ख़ लाल
आईने में दिखी हक़ीक़त और अब नहीं है...
कजरारे नयन
मन मोह लिए हैं कितने इन कजरारे नयनों ने
हर अदा पर इनकी दिल कितने बेताब हुए हैं
जगा कर प्यास कभी ना बुझने वाली
पर्दे में...
तेरी दीवानी
मेरे रोम रोम में तू समाया है इस तरह कि
हर धड़कन सिर्फ़ तेरे नाम से गूंजती है
तू तलाशता है तेरी धुन पर दीवानी हुई...
सिंदूरी टीका
माथे पर दमके सिंदूरी टीका
और अँख़ियों में फैल गया कजरा
हाथों में है पी तेरे नाम की मेहंदी
और बालों में सजा जूही का गजरा