बाँसुरी

  तेरे मेरे रिश्ते की कोई पहचान नहीं राधे फिर भी मेरे रोम रोम में तू समाई है ज़ुबान से ना ले सकूँ मैं नाम तेरा इसलिए किसी...

खोया हुआ वक़्त

      ना जाने किसका मुझे इंतेज़ार है और ज़िंदगी क्यूँ इस क़दर बेज़ार है लौट कर आएगा खोया हुआ वक़्त है यक़ीं फ़िज़ाओं में देखो छाया फिर खुमार...

गुफ्तगू

    चल पड़ें हैं राह पुरानी कुछ लम्हें निकाल के और जी रहे हैं आज हम फिर कुछ पल सुकून के कहने को थी कितनी बातें पर...

तेरी दीवानी

      मेरे रोम रोम में तू समाया है इस तरह कि हर धड़कन सिर्फ़ तेरे नाम से गूंजती है तू तलाशता है तेरी धुन पर दीवानी हुई...

क़यामत

      हया तो गहना है औरत का नज़रों से मगर क़यामत वो ढाती है दुनिया की हसरत भरी निगाहों को अपने दामन में चुपके से समाती है

पहचान

      मंज़िल की खबर नहीं रास्ते भी अनजान हैं वक़्त है मुट्ठी में और ढूँढनी अपनी पहचान है

सोलह सिंगार

  इतरा रहा है ये मन मेरा करके सोलह सिंगार माथे पे चमक रहा है मेरे कुमकुम सुर्ख़ लाल आईने में दिखी हक़ीक़त और अब नहीं है...

सिंगार

      पहन कर ये गहने कर लिया है सिंगार और नहीं होता अब पी का इंतेज़ार ताक रहे हैं राहे मन हो चला अब बेचैन क्यूँकि करने लगेंगे...

थोड़ा मैं संवार लूँ

    पीछे छोड़ फ़िक्र जमाने की आज ख़ुद को थोड़ा मैं संवार लूँ आईने से वफ़ा की कोई उम्मीद नहीं बस ख़ुद ही अपने को निहार लूँ

वीराना

    वीराना छाया है हर ओर कि आहट सुनाई देती नहीं कोई वो ज़ोर ख़रोश भरी आवाज़ें ना जाने है कहाँ खोई।

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