गुफ्तगू

    चल पड़ें हैं राह पुरानी कुछ लम्हें निकाल के और जी रहे हैं आज हम फिर कुछ पल सुकून के कहने को थी कितनी बातें पर...

बाप्पा

    तू है मेरी वंदना मेरी हर मुराद तू है और मेरे हर नए आग़ाज़ का अंजाम तू है दुआ क़बूल हो जाए जो तेरे दर पर...

सिंगार

      पहन कर ये गहने कर लिया है सिंगार और नहीं होता अब पी का इंतेज़ार ताक रहे हैं राहे मन हो चला अब बेचैन क्यूँकि करने लगेंगे...

उम्मीद की लौ

    झुकी हुई हैं नज़रें आज इंतेज़ार में तेरे डर हैं कहीं धड़कनें थम ना जाएँ उम्मीद की लौ मगर बुझने नहीं देंगे इंतेज़ार की घड़ियाँ शायद पल...

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