इंतेज़ार

    राह निहार रही हूँ मैं ना जाने कब से ख़त्म नहीं होती ये घड़ियाँ इंतेज़ार की माथे पर शिकन और बेचैनी दिल में लिए स्वागत में खड़ी...

थोड़ा मैं संवार लूँ

    पीछे छोड़ फ़िक्र जमाने की आज ख़ुद को थोड़ा मैं संवार लूँ आईने से वफ़ा की कोई उम्मीद नहीं बस ख़ुद ही अपने को निहार लूँ

सिंगार

      पहन कर ये गहने कर लिया है सिंगार और नहीं होता अब पी का इंतेज़ार ताक रहे हैं राहे मन हो चला अब बेचैन क्यूँकि करने लगेंगे...

उम्मीद की लौ

    झुकी हुई हैं नज़रें आज इंतेज़ार में तेरे डर हैं कहीं धड़कनें थम ना जाएँ उम्मीद की लौ मगर बुझने नहीं देंगे इंतेज़ार की घड़ियाँ शायद पल...

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