सिंदूरी टीका
माथे पर दमके सिंदूरी टीका
और अँख़ियों में फैल गया कजरा
हाथों में है पी तेरे नाम की मेहंदी
और बालों में सजा जूही का गजरा
धुन प्यार की
अभी छाया है जहाँ हर ओर सन्नाटा
महफ़िल मेरे घर में यार की फिर सजेगी
कुछ पल की ही हैं ये खामोशियाँ
फ़िज़ा में फिर धुन प्यार...
ज़िंदगी के रंग
बेरंग सी क्यूँ लगती है आज ज़िंदगी मुझे
सुकून ढूँढने चली हूँ ना जाने क्या वजह हैं
तनहाई का लेकर फ़ितूर आख़िर क्या होगा
ये जाना कि...
खोया हुआ वक़्त
ना जाने किसका मुझे इंतेज़ार है
और ज़िंदगी क्यूँ इस क़दर बेज़ार है
लौट कर आएगा खोया हुआ वक़्त है यक़ीं
फ़िज़ाओं में देखो छाया फिर खुमार...
तेरी झाँझर
इस ख़ामोशी को तोड़ दो ना तुम
ज़रा अपनी झाँझर हलके से झनका दो
मदहोशी में डूब जाएँ फिर ये समा
ऐसे अपने नयनों से जाम छलका...