हर ख़ुशी के महके पर एक हिंदुस्तानी के घर दिया जलना अनिवार्य है। दिवाली भी एक ऐसा त्योहार है जहाँ लाखों दिए जलाए जाते है । “दीयों की रोशनी” कविता में मैंने एक दीये की व्यथा बताने की कोशिश की है । जलाने से पहले इन्हें बड़े ध्यानपूर्वक तैयार करते हैं और इन्हें जलता देख बहुत ख़ुशी महसूस करते हैं । पर जल जाने के बाद हम इनकी तरफ़ ध्यान नहीं देते और यूँ ही उठा कर फ़ेक देते हैं। दीया दुखी होकर कहता है कि ज़रा अदब से उठाना इन दीयों को…
Diyon ki Roshni – What a beautiful poem Nisha. The essence of sacrifice and being rejected after is so powerfully described. Sometimes it may hold true for people also. And your recitation is superb. Loved it.
Thank you so much Shweta. Means a lot. You are absolutely right. Holds true for people too… the recent incident is a living example.