मुस्कुराती हूँ मैं आजकल ना जाने क्यूँ हर बात पे
इश्क़ तो है नहीं , हूँ मैं उम्र की उस दराज़ पे
शायद अपना साथ मुझे अब अच्छा लगने लगा है
अकेलेपन का अहसास भी अब कुछ छटने लगा है
शीशे में देख कर अपना अक्स इत्मिनान सा होता है
यही तो है तेरा अपना बाक़ी नज़रों का धोखा है
आज़ादी का एक नया अहसास मुझे अब होने लगा है
पुरानी यादों का मेला धुँधलाते हुए खोने लगा है
हट आने वाला कल नयी उम्मीद ले कर आता है
गुज़रे कल का अधूरा रंग साथ में लाता है
गिर गिर कर ही तो हर पल सम्भलना सीखा है हमने
अब हक़ीक़त में बदलने है देखे हैं जो हर वो सपने
क़दमों में आज एक नईं उमंग एक नयी पहचान है
ये दिल आज ज़ंजीरों में क़ैद रिश्तों से अनजान है
कहते हो ख़ुदगर्ज़ी जिसे वो मेरा ग़ुरूर मेरा गुमान है
आज पंखों की ज़रूरत नहीं मेरे हौसलों से ही मेरी उड़ान है
एक अर्धानगिनी , एक माँ या बेटी सम्पूर्ण हूँ मैं
पर सबसे पहले एक औरत पूर्ण हूँ मैं