हाँ …बात ये गुज़रे ज़माने की है
जिक्र यहाँ महज़ एक फ़साने की है
ना जाने कितना अरसा बीत गया
कुछ भूल गया कुछ याद रहा
उम्र की दहलीज़ पर ये बात तब आम थी
पर तेरे मेरे बीच बात कुछ खास थी
दरमियान तेरे मेरे कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ थे
टूटते जुड़ते खट्टे मीठे अहसास थे
ना कह कर भी ना जाने कितनी बातें कह गए
सूनी सी आँखों में कुछ सपना बन कर रह गए
एक नज़र भर जो कभी तुझे देख लिया
यूँ लगा जहाँ सारा जैसे हमें नसीब हुआ
फिर कभी तरस गए दीदार को तेरे
आँखों में ही बीते फिर साँझ सवेरे
लोग कहते थे ये बस उम्र का तक़ाज़ा है
इश्क नहीं ये तो बस एक अफ़साना है
मगर यूँ ही तो नहीं तेरे दर्द से
मेरी आँखों में आँसू छलकते थे
तेरी हर नाकामयाबी पर
क़दम मेरे लड़खड़ाते थे
यूँ ही नहीं खामोश रह कर भी
मेरा दिल तेरे मन की बात जान लेता था
ज़माना कह ले कुछ पर इतना मुझे पता था
कुछ था , हाँ कुछ तो था
हक़ीक़त नहीं वो शायद वो एक सपना था
अनकहा , अधूरा पर अपना सा
वक़्त बीत गया और एक टीस दिल में रह गयी
ज़िन्दगी भर की मुस्कुराहट मेरे होंठों पर दे गयी
अब यादों पर भी धूल सी जैसे चढ़ गयी
वक़्त के साथ ये ज़िन्दगी भी आगे बढ़ गयी