क़यामत

      हया तो गहना है औरत का नज़रों से मगर क़यामत वो ढाती है दुनिया की हसरत भरी निगाहों को अपने दामन में चुपके से समाती है

ज़िंदगी के रंग

    बेरंग सी क्यूँ लगती है आज ज़िंदगी मुझे सुकून ढूँढने चली हूँ ना जाने क्या वजह हैं तनहाई का लेकर फ़ितूर आख़िर क्या होगा ये जाना कि...

तेरी दीवानी

      मेरे रोम रोम में तू समाया है इस तरह कि हर धड़कन सिर्फ़ तेरे नाम से गूंजती है तू तलाशता है तेरी धुन पर दीवानी हुई...

सिंगार

      पहन कर ये गहने कर लिया है सिंगार और नहीं होता अब पी का इंतेज़ार ताक रहे हैं राहे मन हो चला अब बेचैन क्यूँकि करने लगेंगे...

तेरी झाँझर

      इस ख़ामोशी को तोड़ दो ना तुम ज़रा अपनी झाँझर हलके से झनका दो मदहोशी में डूब जाएँ फिर ये समा ऐसे अपने नयनों से जाम छलका...

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